वक्फ कानून पर बेतुकी बयानबाजी
वक्फ कानून पर बेतुकी बयानबाजी
बिहार विधानसभा चुनाव अब अपने पूरे रंग में आ चुका है। छठ पर्व के बाद चुनाव प्रचार में तेजी आएगी। जैसे जैसे मतदान की तारीखें पास आ रही हैं, नेताओं की बयानबाजी भी तीखी से तीखी होती जा रही है। विपक्ष का फोकस मुस्लिम वोटों पर है। ऐसे में वो मुस्लिम वोटरों का रिझाने के लिए इस तरीके की बयानबाजी कर रहा है जिससे मुस्लिम उनके पाले में बने रहें।
विपक्ष के मुख्यमंत्री चेहरा तेजस्वी यादव और राजद के कट्टरवादी छुटभैया नेता भी मुस्लिमवादी हैं। वे घोर मोदी-विरोधी हैं और अब भी उन्हें 2002 के गोधरा दंगों का ‘खलनायक’ करार देते हैं। देश के प्रधानमंत्री के तौर पर मुसलमानों के लिए भी उन्होंने योजनाएं बनाई हों, मुफ्त अनाज बांटा हो, देश के संसाधनों तक उनकी सहज पहुंच तय की हो, लेकिन वे मोदी को ‘संहारक’ मानते हैं। देश की सर्वोच्च अदालत का भी ऐसा कोई फैसला नहीं है, लेकिन ज्यादातर मुसलमान प्रधानमंत्री से नफरत करते हैं।
‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ बहुत छोटे और अनुपयुक्त शब्द हैं। वक्फ कानून का विरोध ही ‘सांप्रदायिक’ है। पहले तेजस्वी ने एक सार्वजनिक मंच से वक्फ संशोधन कानून की मुखालफत करते हुए हुंकार भरी थी कि बिहार में ‘इंडिया गठबंधन’ की सरकार बनी, तो वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक दिया जाएगा। अब राजद के विधान परिषद सदस्य कारी शोएब ने मुस्लिम वोट बैंक को उकसाने के मद्देनजर चुनावी मंच से धमकी-सी दी है कि जिन्होंने वक्फ बिल को समर्थन दिया था, उनका इलाज किया जाएगा।
बिहार में तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद वक्फ समेत ऐसे तमाम बिलों को फाड़ कर फेंक दिया जाएगा। यह कैसा अनर्गल अलाप और चुनाव-प्रचार है? संविधान के तहत चुनाव लड़ रहे हैं और हाथों में संविधान की फर्जी प्रति लिए उसके ‘रक्षक’ होने का दंभ भरते हैं और सार्वजनिक मंचों से ‘घोर असंवैधानिक’ ऐलान करते हैं!
तेजस्वी के इस बयान के बाद बीजेपी ने उन पर पलटवार किया है। भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि तेजस्वी यादव अभी भी 50 साल पुरानी उस सोच में फंसे हैं, जहां संविधान को कूड़ेदान में फेंकने की बात होती थी। उन्होंने यह भी कहा कि तेजस्वी को संसद और न्यायपालिका का सम्मान करना नहीं आता। उन्होंने कहा कि यह दुख की बात है कि पटना के गांधी मैदान में जहां आपातकाल के दौरान लोगों ने संविधान बचाने के लिए संघर्ष किया था, तेजस्वी यादव ने यह कहा कि वे संसद से पास हुए एक कानून (वक्फ अधिनियम) को कूड़ेदान में फेंक देंगे।
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि बीजेपी और एनडीए गठबंधन यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान और उसके किसी भी नियम को कोई भी कूड़े में नहीं फेंक पाएगा. उन्होंने इंडिया गठबंधन से सवाल किया कि क्या वे बिहार में सऊदी अरब, इंडोनेशिया, तुर्की या आईएसआईएस से भी बड़ा शरिया कानून लागू करना चाहते हैं। त्रिवेदी ने इस पर सीधा जवाब मांगा। उन्होंने राजद और सपा जैसे दलों से यह भी पूछा कि समाजवाद तो धन के समान बंटवारे की बात करता है, लेकिन आप कह रहे हैं कि 49 लाख एकड़ ज़मीन पर कुछ ही लोगों का कब्जा होना चाहिए। उन्होंने इसे समाजवाद के विचार के बिलकुल खिलाफ एक सोची-समझी मानसिकता बताया।
इस राजनीतिक बयानबाजी के इतर अहम सवाल यह है कि संसद के दोनों सदनों में पारित और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अधिसूचित केंद्रीय कानून का एक राज्य सरकार क्या बिगाड़ सकती है? यदि संशोधित कानून का दस्तावेजी कागज फाड़ भी देंगे, तो कानून का क्या बिगड़ेगा? कानून तो यथावत और लागू अवस्था में बरकरार रहेगा। जिस मुस्लिम छुटभैये ने ‘इलाज’ करने की धमकीनुमा भाषा का इस्तेमाल किया है, तो सवाल है कि कल्पित तेजस्वी सरकार किनका इलाज करेगी?
संसद में चर्चा करने वाले और अंतत: मत-विभाजन में वक्फ बिल का समर्थन करने वाले सांसदों का एक राज्य सरकार क्या ‘इलाज’ कर सकती है! देश में न्यायपालिका अभी जिंदा और संवेदनशील है। जागरूक और तटस्थ है। सर्वोच्च अदालत ने भी वक्फ संशोधन कानून पर रोक नहीं लगाई है, बल्कि कुछ प्रावधानों पर ‘अंतरिम आदेश’ सुनाया है। फिलहाल यह कानूनी लड़ाई जारी है।
राजद के कठमुल्ला नेताओं के बयान बेईमानी और अमान्य हैं। बिहार में सत्ता के लिए छटपटा रहे राजद-कांग्रेस नेता क्या सर्वोच्च अदालत का भी सम्मान नहीं करते? वे केंद्रीय कानूनों को फाड़ देने का दुष्प्रचार कैसे कर सकते हैं? दरअसल ‘इलाज’ और ‘सबक सिखाने’ की भाषा ही ‘जंगलराज’ का बुनियादी लक्षण है।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए बिहारी जनता को आगाह किया है कि राजद-कांग्रेस के लोग ‘छर्रा’, ‘कट्टे’ और ‘घर से उठाने’ की धमकियां देने लगे हैं। किसी ने हारने की स्थिति में बिहार को ही जला देने की धमकी दी है। यकीनन ये ‘जंगलराज’ के स्पष्ट संकेत हैं।
बेशक बिहार में जंगलराज अतीत का विषय कह दिया जाए, लेकिन उसके सूरमा और सूत्रधार अब भी मौजूद हैं, बेशक कुछ निष्क्रिय हैं। राजद-कांग्रेस के छुटभैया प्रवक्तानुमा नेता दावा कर रहे हैं कि यदि बिहार में एनडीए हार जाता है, तो उसका असर केंद्र सरकार पर भी पड़ेगा। अर्थात मोदी सरकार भी नहीं रहेगी। किस मुगालते में जी रहे हो भाई! देश की जनता बखूबी जानती है कि ये विधानसभा के चुनाव हैं और इनकी छाया भी भारत सरकार पर नहीं पड़ सकती। यह सिर्फ मुसलमानों के वोटों को लामबंद करने और राजद-कांग्रेस के पक्ष में अधिकाधिक वोट जुटाने की सियासी कोशिश भर है।
तेजस्वी यादव युवा नेता हैं। वो बिहार के उप मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं। एक युवा नेता के नाते तेजस्वी को इस बयानबाजी से परहेज करना चाहिए जिससे प्रदेश और देश का माहौल बिगड़ने का खतरा पैदा हो सकता हो। तेजस्वी से बिहार की जनता पूछे कि पढ़ाई, कमाई, दवाई की जो बात करते थे, वे मुद्दे आज कहां गायब हो गए? अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में वक्फ बोर्ड ने कुछ परिवारों को नोटिस भेज कर 48 घंटे में जवाब मांगा है। वहां के घरों में परिवार 60-65 साल से बसे हैं। सरकार इसीलिए वक्फ संशोधन बिल लाई थी कि वक्फ की निरंकुशता को खत्म किया जाए। चुनाव आते और जाते रहेंगे, लेकिन वोटरों का लुभाने के लिए इस तरह की बयानबाजी संविधान और देश की शांति—सुरक्षा—भाईचारे के लिहाज से ठीक नहीं है।
वहीं जनता को भी नेताओं की बयानबाजी में आकर कोई फैसला नहीं करना चाहिए। नेता और राजनीतिक दल अपना मतलब साधने के लिए कुछ भी बोलते ही रहते हैं। चुनाव आयोग को भी ऐसे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जो चुनाव की आड़ में देश की शांति और आंतरिक सुरक्षा बिगड़ने की बात करते हों। वक्फ का मुद्दा संवेदनशील है। ऐसे गंभीर मुद्दे पर गैर जरूरी और अनर्गल बयानबाजी हितकारी नहीं है। ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर तेजस्वी ही नहीं सभी दलों के नेताओं को सोच समझकर बोलना चाहिए। अगर चुप रहें तो देश और देशवासियों के लिए ज्यादा बेहतर होगा।
-डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी, चिकित्सक एवं लेखक
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